8TH SEMESTER ! भाग- 128( Two Sore Truths-1)
Chapter-34: Two Sor
ये भाग मेरे कुछ होनहार रीडर्स की बदौलत प्रतिलिपि ने हटा दिया था.. ऐसे रीडर्स से अच्छा कोई रीडर ही ना हो... खैर, कुछ पन्डुओ के कारण बाकी लोगो को क्यों irritate करना... इसलिए....read एंड review
जब मुझे होश आए हुए कुछ वक़्त बीता और मुझे मेरे जिन्दा होना का आभास हुआ तो सबसे पहले मैने ये चेक किया की मेरे शरीर का कौन-कौन सा अंग काम कर रहा है....
गर्दन...बराबर दाए-बाए ,उपर-नीचे हिल रही थी... दोनो पैर भी सही सलामत थे, लेकिन कयि जगह टाँके लगे थे या फिर टाँके के निशान थे...? एक हाथ मे प्लास्टर चढ़ा हुआ था,लेकिन दूसरा हाथ बिल्कुल मस्त था, मतलब पोर्न देखकर हिलाने मे कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी. लेकिन.... लेकिन जब मैं अपने दूसरे हाथ की हथेलियो को हिलाता-डुलाता तो हल्का सा दर्द उभर रहा था....मेरे दोनो शोल्डर के साथ-साथ मेरी कमर को किसी चीज़ से बाँध कर रखा हुआ था,वो शायद इसलिए क्यूंकी मेरी हड्डिया बुरी तरह टूट चुकी थी जिसे वापस अपनी जगह सेट करने के लिए ये सब इंतज़ाम किया गया था. मेरे सर पर क्या-क्या करामात डॉक्टर लोगो ने की.... मैं नही जानता था लेकिन जैसा कि मुझे अहसास हो रहा था उस हिसाब से सर पर भी कई जगह शायद टाँके लगाए होंगे... मैने अपना एक हाथ जो थोड़ा-बहुत हिल डुल सकता था, उसे उठाकर अपने सर पर फिराया तो दंग रह गया...??? क्यूंकी मेरे सर के सारे बाल ,जो कि मेरे हैंडसम होने मे अहम भमिका निभाते थे ,उनको सॉफ कर दिया गया था...यानी कि मैं इस वक़्त एक हॉस्पिटल मे अपने हाथ-पैर, कंधे,सर और पीठ तुडवा के टकला लेटा हुआ था....? मुझे किसी चीज़ का ज़्यादा गम नही था सिवाय इसके के मेरे बाल अब मेरे सर पर नही है और मैं तो टकला हूँ.
"साला कितना धाँसू हेअर स्टाइल था मेरा,महीनो की मेहनत एक पल मे ये साले उड़ा ले गये...इनकी तो "अंदर ही अंदर हॉस्पिटल वालो को गाली देते हुए मैने खुद से कहा...
इस सदमे से उभरने मे मुझे थोड़ा वक़्त लगा और थोड़े वक़्त के बाद मैने अपने अगल-बगल झाँका तो पाया कि वहाँ और भी कई लोग मौत कि सैय्या पर लेटे हुए है...लेकिन सब के सब बेहोश थे या फिर सो रहे थे.. या फिर एकात लोग निपट गये थे.
"इस समय टाइम क्या हुआ है , घड़ी भी नही टन्गी है कही..."जिस रूम मे मैं था ,उस रूम की दीवारो को मैने छान मारा, लेकिन इस समय टाइम क्या हुआ है, ये जानने का वहाँ कोई इंतेज़ाम नही था... जिस बेड पर मैं लेटा था उससे थोड़ी दूर पर एक लेडी डॉक्टर चेयर पर बैठी किसी फाइल के पन्ने पलट रही थी...
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"जानेमन....."एक घुटी हुई सी आवाज़ उस लेडी डॉक्टर को देख कर मेरे मुँह से निकली,जिसे मैं खुद ही ढंग से नही सुन पाया.... मेरे शरीर मे जगह -जगह पर लगी मशीने अब थोड़ा अधिक तेज बीप -बीप करने लगी थी...
मैने एक और बार उस लेडी डॉक्टर को पुकारा ,जो अप्रोन पहने हुए मुझसे थोड़ी दूर पर बैठी हुई कुछ पढ़ रही थी.. मेरी घुटी हुई आवाज़ तो वो डॉक्टर नही सुन पाई लेकिन मेरे हिलने डुलने से ना जाने कैसी-कैसी भयानक मशीन ,जो कि मेरे मेरे बॉडी से कनेक्टेड थी,वो बीप -बीप की आवाज़ करने लगी और फाइनली उस डॉक्टर ने मेरी तरफ नज़र मारी.....
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"बोलो मत, रूको मैं तुम्हारे फॅमिली को इनफॉर्म करती हूँ कि तुम्हे होश आ गया है..."मेरे पास आते हुए उसने मशीन के वायर जिन्हे मैने निकाल दिया था, उसे वापस लगाते हुए वो बोली और तुरंत वहा से तेज कदमो के साथ बाहर निकल गई.... और तुरंत आ भी गई. उसकी नजर मेरे सिरहाने मे लगी मशीन के मॉनिटर्स पर थी... कि सब कुछ नार्मल तो है ना...
वैसे तो उसने मुझे ना बोलने के लिए कहा था, लेकिन मैने टाइम पुछने के लिए एक बार फिर अपना मुँह फाडा और घुटी हुई आवाज़ मे उससे टाइम पुछा...
"2 बज रहे है...और तुम कुछ मत बोलो.. प्रॉब्लम होगी तुम्हे ओके..."
"तारीख...??"
"बोला ना.. कुछ मत बोलो.. Sshhhhhh"
"तेरी दाई की..... प्राब्लम मुझे होगी या तुझे... ज़्यादा होशियारी मत पेल वरना सारी डॉक्टरी पिछवाड़े मे घुसा दूंगा "उसने जब अपना डाइलॉग दोबारा रिपीट किया तो मैने उसको देखकर अंदर ही अंदर खुद से कहा और एक बार फिर से अपना मुँह फाडा" is it AM or PM..."
"What......"
"2 Am or 2 PM...???"अबकी बार मैने अपना पूरा ज़ोर लगाकर कहा और ये बोलने के बाद ही निढाल होकर बेड पर लंबी-लंबी साँसे भरने लगा...
"मैने बोला था ना,बोलने की कोशिश मत करो...नाउ रिलैक्स ..."
"तू है कौन, जो श्री अरमान को रिलैक्स करने के लिए बोल रही है.. इसका भी गेम बजाना पड़ेगा "
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उसके बाद जो मेरी जो आँख लगी वो मुझे नही पता कि कब खुली...और जब मेरी आँख दोबारा खुली तो मुझे सिर्फ़ इतना पता था कि मैं दूसरी बार जगा हूँ... मैने कुछ देर तक अपने हाथ-पैर हिलाए ,जिससे मेरे बॉडी से कनेक्टेड वो भयानक मशीन्स फिर से अपना अलार्म बजने लगी और एक नर्स तुरंत मेरे पास आई....
"अपने हाथ-पैर मत हिलाओ..."मेरे पैर को पकड़ कर सीधा करते हुए उसने कहा...जिससे कि मेरा माथा एक बार फिर गरम हो गया...
" मेरा हाथ-पैर है , मैं हिलाऊ चाहे ना हिलाऊ...तू कौन होती है मुझे टोकने वाली.. तेरा भी गेम बजाना पड़ेगा,लगता है ."सोचते हुए मैने एक बार फिर से अपने पैर को टेढ़ा किया ,जिसे सीधा करते हुए उस नर्स ने ना जाने मेरे पैर पर क्या बाँध दिया और एक दवाई से भरी सीरिंज मेरे पिछवाड़े मे घुसा दी....
"तू रुक, होश आने दे...फिर यही सीरिंज तेरे पिछवाड़े मे घुसाउँगा.. घुस.. घुस घुघघू ..."जमहाई मारते हुए मैं बड़बड़ाया और फिर से सो गया....
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नेक्स्ट टाइम जब मेरी नींद खुली तो पिछली बार की तरह इस बार भी मुझे सिर्फ़ इतना ही मालूम था कि मेरी आँख पहले भी खुल चुकी है.... मेरा पैर अब भी किसी चीज़ से बँधा हुआ था और वो नर्स जिसने मेरे पिछवाड़े मे सुई घुसाई थी वो इस समय किसी दूसरे मरीज के पिछवाड़े मे सुई लगा रही थी... साली हवसी... जब देखो तब आदमी लोग का पिछवाड़ा देखने के लिए लालायित रहती है.. कही बेहोशी मे इसने मेरे साथ कुछ गलत तो नहीं कर दिया...
"अबे... मुझे होश आ गया है,कोई जाकर मेरे घरवालो को इसकी खबर देगा या मैं खुद जाउ उन्हे ये बताने "अपनी पूरी ताक़त इकट्ठा करके मैं चीखा,लेकिन आवाज़ उतनी तेज़ नही थी ,जितनी की अक्सर चीखने से होती थी... लेकिन वहाँ मौज़ूद सभी लोगो को सुनाई दे...इतनी तेज़ तो थी ही...
"वेट..."उस मरीज के पिछवाड़े मे सीरिंज डालकर उस नर्स ने वहाँ मौज़ूद दूसरी नर्स से कहा कि वो मेरे रिलेटिव्स को ये खबर दे दे....
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अब मुझे अंदाज़ा हो चला था कि अब से कुछ देर बाद क्या होने वाला है.. जैसे मैने सोचा था उसके हिसाब से किसी हिन्दी मूवी की तरह मेरी माँ सबसे आगे दौड़ते हुए मेरे पास आएगी ,उसके आँखो मे खुशी के आँसू होंगे... फिर मेरे पिता जी मेरी माँ के बाद एंट्री मारेंगे, वो खुश तो होंगे लेकिन रिएक्ट ऐसे करेंगे,जैसे उन्हे कोई फरक ही नही पड़ता. उसके बाद मेरा बड़ा भाई एंट्री मारेगा और ये जानते हुए भी मैं ठीक से बात नही कर सकता वो मुझसे बहुत सारे सवाल करेगा. मेरे बड़े भाई के सवाल के बम-बारी से जब मैं घायल हो जाउन्गा तो फिर मेरी माँ जिसके आँख मे इस वक़्त भी खुशी के आँसू होंगे, वो मेरे भाई को डाँटेगी और मेरे पिता श्री से फलाना मंदिर मे फलाना भगवान के नाम पर दान-दक्षिणा करने को कहेगी....
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ऐसा मैने बेड पर पड़े-पड़े सोचा था लेकिन लगता है कि शनि और मंगल अब भी मुझसे खफा-खफा है क्यूंकी मुझसे सबसे पहले मिलने के लिए ना तो मेरी माँ आई और ना ही मेरे पापा....मुझसे सबसे पहले मिलने दो लोग आए...एक था मेरा बड़ा भाई विपेन्द्र और दूसरा था मेरा गे दोस्त-अरुण.......
विपिन भैया को देखते ही मैं समझ गया था कि अब सवाल-जवाब की जोरदार बम-बारी होने वाली है. इसलिए मैने तय कर लिया था कि अब मैं बेड पर चुप-चाप लेटा हुआ सिर्फ़ सर हिलाउन्गा और ऐसे शो करूँगा जैसे कि मैं कुछ बोल ही नही सकता,जैसे कि मैं गूंगा ही हो गया हूँ.. अरुण और विपिन भैया मेरे सामने आए , मैने दोनो को देखा और अरुण को देख कर मेरा कलेजा जल उठा कि उसके सर पर बाल है और मेरे नहीं.... उसके बाद मैने एक और चीज़ ऐसी देखी जिसे देखकर मेरा कलेजा और भी जला...वो था उन दोनो की हालत, पिटाई मेरी हुई थी, सारे शरीर पर ज़ख़्म खाकर मैं बिस्तर पर लेटा हुआ था ... लेकिन दर्द उन दोनो की आँखो मे मैं सॉफ देख सकता था. अरुण और बड़े भैया की आँखो मे खुशी और दुख का बड़ा अजीब कॉंबिनेशन था. जिसे समझने मे मुझे थोड़ा वक़्त लगा. वो दोनो बहुत खुश इसलिए थे क्यूंकी आज मैने ना जाने कितने दिनो बाद अपनी आँखे खोली थी और मुझे मेरे ज़ख़्मो के साथ देखकर वो दोनो बहुत ज़्यादा दुखी भी थे. उस एक पल मे दोनो की ये हालत देखकर दिल किया कि साला अभी बिस्तर से उठु और गौतम के बाप का मर्डर कर दूं, दीपिका को नंगा करके बेल्ट से उसका पिछवाड़ा लाल करके सड़क पर दौड़ाऊ और नौशाद को हॉस्टल मे ही जिन्दा दफ़ना दूं... वो एक पल साला पूरा फिल्मी माहौल था और ऐसे फिल्मी मोमेंट मे उबाई मारने वाला मैं खुद भी कुछ देर के लिए भावनाओ मे बह गया था... कुछ देर तक तो वहाँ ऐसी ही सिचुएशन रही और उस एक पल मे मैं ये भी भूल गया कि मुझे अपना मुँह नही खोलना है, चाहे धरती पलट जाए या फिर आसमान उलट जाए, लेकिन मैने अपना मुँह खोला, आँखो मे नमी लाते हुए अपना मुँह खोला...
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"सॉरी भैया...."
मेरे द्वारा सॉरी बोलने पर मेरा बड़ा भाई अब गुस्से मे आया लेकिन मुझसे कुछ नही बोला....
"मुझे नही पता था कि बात इतनी आगे बढ़ जाएगी..."मैने दोबारा विपिन भैया की तरफ देख कर कहा...
"घरवालो को कुछ मत बताना और मम्मी-पापा से तुझे क्या कहना है ये अरुण तुझे बता देगा..."
इतना बोलकर मेरा बड़ा भाई वहाँ से ऐसे ही चलता बना. मेरी हालत और मुझे होश मे देख कर मेरा बड़ा भाई कुछ ज़्यादा ही एमोशनल हो गया था और मैं जानता था कि यदि वो थोड़ी देर और उधर मेरे पास रुकते तो एक धांसु बोरिंग सा सीन हमारे बीच बनता.
"क्या हाल है बे टकले..."विपिन भैया के जाने के बाद अरुण बोला"अब हिलायेगा कैसे ... तेरा एक हाथ तो कुछ हफ़्तो के लिए गया काम से और दूसरा हाथ इस काबिल नही है कि तू हिला सके..."
"तुझे सबसे पहले यही बात मिली पूछने के लिए...??? मैने सोचा था कि तू थोड़ा बहुत दुखी होगा मेरी ये हालत देखकर "
"अबे दुखी तो मैं अब हुआ हूँ, तुझे होश मे देखकर..."अपनी चेयर को मेरी तरफ और पास खिसकाते हुए अरुण बोला"जब तक तू मरे हुए की तरह लेटा था ना तो मैं बेदम खुश था,मालूम है क्यूँ..."